Dedicated Freight Corridor Project की पूरी जानकारी – हेलो दस्तो कैसे हो आपलोग आशा करती हूँ की आपलोगो को मेरा द्वारा लिखा गया article पसंद आ रहा होगा। दोस्तों क्या आप जानते है की डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर प्रोजेक्ट क्या है और इसकी जरूरत क्यों है? अगर नहीं, तो आइये मैं आपको इस आर्टिकल के माध्यम से डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर प्रोजेक्ट की पूरी जानकारी आपलोगो को दूंगी। चलिए शुरुआत करते है…
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ईस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर के खुर्जा-भाऊपुर सेक्शन का उद्घाटन कर देश को एक नया उपहार दिया है। डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (DFC) को इकोनॉमी का पावर बूस्टर मन जा रहा है। इनके निर्माण से रेलवे देश में माल ढुलाई के क्षेत्र में आमूल बदलाव की तैयारी कर रहा है। ये देश में इकोनॉमी के पहिये को और भी तेज करेंगे । इससे कुल 10,222 किमी लंबा नया रूट तैयार होगा। जो की रेलवे के कुल रूट का 16 फीसदी हिस्सा होगा।
इस प्रोजेक्ट को बनाने का विचार कैसे बना ?
जिस प्रकार से देश के सभी कोनों को जोड़ने के लिए राजमार्गों के स्वर्णिम चतुर्भुज अर्थात गोल्डेन ट्राईएंगल का निर्माण किया गया, ठीक उसी तरह पूरे देश को सिर्फ माल ढुलाई के लिए समर्पित रेलवे लाइन से जोड़ने के लिए रेलवे द्वारा भी स्वर्णिम चतुर्भुज और दो डायगोनल का निर्माण किये जाने का प्रस्ताव रखा गया। इस प्रोजेक्ट का ऐलान साल 2005 में तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने किया था।
स्वर्णिम चतुर्भुज लिंकिंग अर्थात गोल्डेन ट्राईएंगल के द्वारा दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और हावड़ा को जोड़ा जा रहा है, जबकि डायगोनल्स के द्वारा दिल्ली-चेन्नई और मुंबई-हावड़ा को जोड़ने की तैयारी हो रही है। डेडिकेटेड का मतलब यह है कि यह नया रेलमार्ग होगा, जो सिर्फ और सिर्फ मालगाड़ियों के लिए समर्पित होगा यानी इस पर सिर्फ मालगाड़ियां ही चलेंगी दूसरी कोई रेलगाड़ियां नहीं चलेंगी।
इस प्रोजेक्ट की शुरुआत ईस्टर्न और वेस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेड कॉरिडोर से की जा रही है। इसके अलावा हाल में तीन नए कॉरिडोर ईस्ट-वेस्ट, ईस्ट कोस्ट और नॉर्थ साउथ सब कॉरिडोर के लिए भी डीपीआर भी तैयार किया गया है। ईस्टर्न कॉरिडोर पंजाब के लुधियाना से पश्चिम बंगाल के दानकुनि तक और वेस्टर्न कॉरिडोर यूपी के दादरी से मुंबई के जवाहर लाल नेहरू पोर्ट तक का बन रहा है। ईस्टर्न कॉरिडोर करीब 1839 किमी लंबा है और वेस्टर्न कॉरिडोर 1499 किमी लंबा है। इस प्रोजेक्ट के लिए करीब से करीब 10,667 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण किया जाएगा, जिसका करीब 96 फीसदी हिस्सा अधिग्रहित पहले से हो चुका है। यह जमीन 9 राज्यों के 61 जिलों में ली गयी है।
डेडिकेटेड कॉरिडोर की जरूरत क्यों है?
आजादी के बाद 1950-51 में कुल माल ढुलाई में रेलवे का 83 फीसदी हिस्सा था, लेकिन 2011-12 तक यह हिस्सा घटकर 35 फीसदी तक आ गया। दूसरी और देखे तो देश में कुल सड़क जाल का महज आधा फीसदी हिस्सेदारी रखने वाले नेशनल हाईवे के द्वारा कुल सड़क माल ढुलाई का 40 फीसदी हिस्सा जाता है।यही वजह है की रेलवे में माल ढुलाई बढ़ाने के प्रयास के तहत यह बड़ा कदम उठाया गया।
देश में बुनियादी ढांचे विकास पर अगले वर्षों में भारी निवेश की योजना है, उद्योगों का रेजी से विकास हो रहा है, साथ ही बिजली की बढ़ती जरूरतों के लिए कोयले की ढुलाई लगातार बढ़ती जा रही है, इन सभी कारणों से माल ढुलाई के लिए अलग से ऐसे लाइन के विकास की जरूरत महसूस हुई जिन पर सिर्फ मालगाड़ियां चलें ताकि किसी तरह का मालगाड़ियों को डिस्टर्बेंस न हो और माल तेजी से देश के एक कोने से दूसरे कोने तक पहुंच सके।
सरकार ने इसके लिए एक अलग कंपनी बनायी है जिसका नाम डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर इंडिया लिमिटेड (DFCCIL) है , यह रेल मंत्रालय के पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनी है। इस कंपनी का गठन 30 अक्टूबर 2006 को हुआ था । इसमें DFCCIL की भूमिका इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोवाइडर और इस कॉरिडोर के निर्माण, संचालन और रखरखाव की है। DFCCIL खुद डीएफसी पर इन मालगाड़ियों का संचालन करेगा और अंत में जाके उन्हें रेलवे या अन्य ऑपरेटर को सौंप देगा।
इस प्रोजेक्ट का विकास कैसे हुआ?
अप्रैल 2005 मे तत्कालीन प्रधानमंत्री और रेल मंत्री द्वारा इस प्रोजेक्ट की घोषणा की गयी।
फरवरी 2006 में CCEA ने इस प्रोजेक्ट को इन प्रिंसिपल मंजूरी दी।
अक्टूबर 2006 में एक सरकारी कंपनी के रूप में DFCCIL का गठन किया।
जून 2015 में CCEA ने प्रोजेक्ट के लिए 81,459 करोड़ रुपये के लागत अनुमान को मंजूर किया।
अक्टूबर 2019 में खुर्जा-भदान सेक्शन (194 Km) में ट्रायल ट्रेन रन की शुरुआत हुई।
दिसंबर 2019 में रेवाड़ी-मदार सेक्शन (306 Km) में ट्रायल रन की शुरुआत हुई।
दिसंबर 2020 में ईस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर के खुर्जा-भाऊपुर सेक्शन का उद्घाटन हुआ।
डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर प्रोजेक्ट में 12 गांव अड़चन बने हैं
वर्ल्ड क्लास प्रोजेक्ट में सिकंदराबाद व बुलंदशहर क्षेत्र के 12 गांवों के किसान वाजिब मुआवजे की मांग को लेकर विरोध कर रहे हैं। वह यमुना एक्सप्रेस की तर्ज पर भू-अधिग्रहण का मुआवजा चाहते हैं। एडीएम प्रशासन अरविंद कुमार मिश्र ने बताया कि प्रशासन किसानों को पेमेंट कर चुका है। उन्हें कोर्ट के निर्णय का इंतजार करना होगा।
एक अगस्त को कार्यदायी संस्था कारीडोर पर काम शुरू करेगी। टेंडर की प्रक्रिया पूरी कर ली गई है। रेलवे ने अधिकांश जमीन पर कब्जा ले लिया है। दादरी से खुर्जा तक करीब 550 करोड़ प्रोजेक्ट पर खर्च होगा। – हरसिमरनजीत सिंह, असिस्टेंट प्रोजेक्ट मैनेजर
कौन-कौन से चार नए कॉरिडोर के निर्माण का ऐलान किया गया?
साल 2010 के बजट में तत्कालीन रेल मंत्री ने चार नए कॉरिडोर के निर्माण का ऐलान किया था।
- ईस्ट-वेस्ट कॉरिडोर (कोलकाता से मुंबई) करीब 1976 किमी.
- नॉर्थ-साउथ कॉरिडोर (दिल्ली-चेन्नई) करीब 2173 किमी.
- ईस्ट-वेस्ट कॉरिडोर (खड़गपुर-विजयवाड़ा) करीब 1100 किमी.
- साउदर्न कॉरिडोर (चेन्नई-गोवा) करीब 899 किमी
क्या डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर प्रोजेक्ट से फायदा होगा?
डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर प्रोजेक्ट से बंदरगाहों, निर्यातकों, आयातकों, शिपिंग लाइन, कंटेनर ऑपरेटर आदि को काफी फायदा होगा। वेस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर के समानांतर ही दिल्ली-मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरिडोर का निर्माण किया जा रहा है। हमने यह देखा है कि देश में हाईवे के निर्माण से इकोनॉमी को गति मिली है, उसी तरह से यह कॉरिडोर इकोनॉमी को और तेज गति देने वाला है।
यह हाईस्पीड कॉरिडोर है जिसमें मालगाड़ियों की औसत गति 75 किमी प्रति घंटा से बढ़कर 100 किमी प्रति घंटा तक होने वाली है। अर्थात इससे माल की आवाजाही तेज हो पाएगी, जिससे कारोबारी गतिविधियां भी तेज होंगी और अर्थव्यवस्था की स्पीड बढ़ेगी। भारतीय रेल के इतिहास में पहली बार मोबाइल रेडियो कम्युनिकेशन और GSM आधारित ट्रैकिंग सिस्टम का इस्तेमाल होगा,इसके इस्तेमाल से मालगाड़ियों की ट्रैकिंग भी की जाएगी। माल ढुलाई वाले वाहन की जरूरत कम होने से डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर से बड़े पैमाने पर ट्रांसपोर्ट सेक्टर से ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन भी कम होगा। Ernst & Young के एक अनुमान के अनुसार डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर से पहले 30 साल में ही करीब 45 करोड़ टन कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन कम हो जाएगा।
ईस्ट और वेस्ट कॉरिडोर प्रोजेक्ट के निर्माण के लिए पैसा कहां से आएगा?
ईस्ट और वेस्ट कॉरिडोर के निर्माण पर करीब 81,459 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान लगाया गया है। DFCCIL ने इस कॉरिडोर के निर्माण के लिए वर्ल्ड बैंक, JICA जैसी कई अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से गठजोड़ किया है। इस कॉरिडोर के कई सेक्शन में टाटा-ALDESA के जॉइंट वेंचर, L&T-Sozits के कंसोर्टियम को भी ठेका मिला है। इसके निर्माण पर प्रति किमी करीब 18 करोड़ रुपये खर्च होंगे।
आशा करती हु की मेरा यह आर्टिकल आपलोगो को पसंद आया होगा। अगर पसंद आये तो like और share जरूर करे।
डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर प्रोजेक्ट की पूरी जानकारी
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